सूत्र… यानी जीव भी द्रव्य हैं।
“च” से जीव रूपी व अरूपी भी।
बहुवचन का प्रयोग –> एक जीव नहीं वरना “एको ब्रह्म” हो जायेगा।
एको ब्रह्म यानी जिसमें बढ़ने की शक्ति हो/Power of Evolution जो हर जीव में होती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र 5/3)
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6 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने जीवाश्व को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
शुद्ध जीव अरूपी होता है; कर्म पौद्गलिक होते हैं; इसलिए वह जब आत्मा के साथ घुल मिल जाते हैं तो आत्मा उस पर्टिक्युलर टाइम पर यानी संसारी अवस्था में रूपी हो जाती है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने जीवाश्व को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
जीव karmon ke sanyog se “रूपी’ ho jaata hai ? Ise clarify karenge, please ?
शुद्ध जीव अरूपी होता है; कर्म पौद्गलिक होते हैं; इसलिए वह जब आत्मा के साथ घुल मिल जाते हैं तो आत्मा उस पर्टिक्युलर टाइम पर यानी संसारी अवस्था में रूपी हो जाती है।
‘जीव karmon ke sanyog se “रूपी’ ho jaata hai’; Yeh sentence shayad original post me tha ? Ise change kiya gaya hai kya? Clarify karenge, please ?
ध्यान नहीं, अदरवाइज भी इस सेंटेंस का मेन-टॉपिक से कोई कनेक्शन नहीं लग रहा।
Okay.