जीवाश्च… यहाँ “च” से लेना –> जीवरुपी (संसार अवस्था में), अरूपी भी (स्वभाव की अपेक्षा,संसारी अवस्था में भी)।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/3)
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने जीवाश्व को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने जीवाश्व को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।