तप का तात्पर्य इच्छाओं के निरोध रुप है, जिसके द्वारा कर्मों की निर्जरा होती है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि जब ज्ञान का अजीर्ण होता है,तो घंमड़ हो जाता है और तप का क़ोध महसूस करते है।
अतः जीवन में ज्ञान होने पर तप की तरफ ही भाव होना चाहिए ताकि अपना कल्याण कर सकता हैं।
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तप का तात्पर्य इच्छाओं के निरोध रुप है, जिसके द्वारा कर्मों की निर्जरा होती है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि जब ज्ञान का अजीर्ण होता है,तो घंमड़ हो जाता है और तप का क़ोध महसूस करते है।
अतः जीवन में ज्ञान होने पर तप की तरफ ही भाव होना चाहिए ताकि अपना कल्याण कर सकता हैं।