मुनि अपने लिए पढ़ते/ लिखते हैं, उसमें से औरों को ज्ञान-दान भी कर सकते हैं ।
जो दूसरों के लिए ही ज्ञान अर्जित करते हैं, उसमें से दूसरों को दान कैसे दे सकते हैं ! वह तो दूसरों का है न !
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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दान का तात्पर्य परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना होता है,यह चार प्रकार के होते हैं आहार दान, औषधि दान, उपकरण या ज्ञान दान और अभय दान। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रावकों को ज्ञान दान मुनि महाराज को देना आवश्यक है। मुनि महाराज ज्ञान अर्जित करने के बाद सभी को मार्ग दर्शन करते हैं। मुनि महाराज का कर्तव्य है कि सभी को धर्म के विषय में बताना।
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दान का तात्पर्य परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना होता है,यह चार प्रकार के होते हैं आहार दान, औषधि दान, उपकरण या ज्ञान दान और अभय दान। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रावकों को ज्ञान दान मुनि महाराज को देना आवश्यक है। मुनि महाराज ज्ञान अर्जित करने के बाद सभी को मार्ग दर्शन करते हैं। मुनि महाराज का कर्तव्य है कि सभी को धर्म के विषय में बताना।