दान / त्याग
दान में वस्तु के प्रति आदर भाव होता है, संसार अच्छा चलता है ।
त्याग में ना आदर होता है ना हेयता, संसार घटता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
दान में वस्तु के प्रति आदर भाव होता है, संसार अच्छा चलता है ।
त्याग में ना आदर होता है ना हेयता, संसार घटता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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दान का मतलब परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना कहलाता है।यह भी चार प्रकार के हैं, आहार दान, औषधि दान, उपकरण या ज्ञान दान और अभय दान होते हैं।त्याग का मतलब सचेतन और अचेतन समस्त परिग़ह की निवृति को कहते हैं परस्पर प्रीति के लिए अपनी वस्तु को देना त्याग है लेकिन संयमीजनों के योग्य ज्ञान आदि का दान त्याग कहलाता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि दान में वस्तु के प्रति आदर भाव होता है, इससे संसार अच्छा चलता है लेकिन त्याग में न आदर होता है न हेयता और संसार घटता है।
“हेयता” ,”त्याग” me kaise nahi hota?
त्याग करते समय यदि “हेयता” के भाव आये तो …
1) वस्तु तो छूट जायेगी पर द्वेष भाव साथ जायेगा
2) हेय मान कर छोड़ी वस्तु का उचित लाभ भी नहीं मिलेगा
।
“वस्तु का उचित लाभ” kyun chahiye jab tyaagna hi hai?
“…उचित लाभ ” कहाँ कहा है ?
Uncle kaha gaya tha…neeche Admin waale post mein bhi uska varnan hai aur mere do doubts hain.
Confusion,
दुबारा भेजो ।
Mere A) aur B) do doubts hain.
“दान में वस्तु के प्रति आदर भाव होता है, संसार अच्छा चलता है ।
त्याग में ना आदर होता है ना हेयता, संसार घटता है ।”
A) “हेयता” ,”त्याग” me kaise nahi hota?
“त्याग करते समय यदि “हेयता” के भाव आये तो …
1) वस्तु तो छूट जायेगी पर द्वेष भाव साथ जायेगा
2) हेय मान कर छोड़ी वस्तु का उचित लाभ भी नहीं मिलेगा ”
B)“वस्तु का उचित लाभ” kyun chahiye jab tyaagna hi hai?
A) त्याग करते समय वस्तु की शेष्ठता/ हेयता के विचार के त्याग से ही त्याग में शेष्ठता आती है ।
B) त्याग क्यों करते हैं ?
पाप कम/ पुण्य बढ़ाने/ निर्जरा के लिए,
द्वेष भाव सहित छोड़ने में ये तीनों लाभ पूरे मिलेंगे ?
Okay.