धर्म आत्मा का स्वभाव है,
कर्म किये का फल ।
दोनों को अलग अलग रखें ।
धर्म तो मंगलाचरण हैं – कार्य करने से पहले, कार्य के दौरान और अंत में (चाहे परिणाम अनुकूल हो या प्रतिकूल) ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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One Response
धर्म—सम्यग्दर्शन,सम्यगज्ञान और सम्यक चारित्र ही है।
कर्म—जीव मन वचन काम के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब उसका क़िया या कर्म ही है। इसके अलावा कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है। अतः धर्म आत्मा का स्वभाव है जबकि कर्म किए का फल है। अतः दोनों को अलग अलग रखें। धर्म तो मंगलाचरण है जिस पर श्रद्वा करके कार्य करना चाहिए चाहे परिणाम अनुकूल हो या प़तिकूल हो। अतः जीवन में धर्म पर श्रद्वा करके व अपनाना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण होगा।
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धर्म—सम्यग्दर्शन,सम्यगज्ञान और सम्यक चारित्र ही है।
कर्म—जीव मन वचन काम के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब उसका क़िया या कर्म ही है। इसके अलावा कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है। अतः धर्म आत्मा का स्वभाव है जबकि कर्म किए का फल है। अतः दोनों को अलग अलग रखें। धर्म तो मंगलाचरण है जिस पर श्रद्वा करके कार्य करना चाहिए चाहे परिणाम अनुकूल हो या प़तिकूल हो। अतः जीवन में धर्म पर श्रद्वा करके व अपनाना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण होगा।