1. पंगत में भोजन कर लेने* के बाद परोसना** भी चाहिये ।
2. भोजन ढ़का*** भी रखना चाहिये तथा भूखे**** को ही परोसें ।
* शिक्षा ग्रहण
** धर्मोपदेश
*** आग्रह होने पर ही
**** जिज्ञासु
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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धर्मोपदेश का तात्पर्य जीवों को उत्तम सुख की प्राप्ति हो तो ऐसे वीतराग धर्म का उपदेश नाम का स्वाध्याय होता है,इसकी पात्रता सिर्फ गुरुओं और जिनवाणी से ही प्राप्त होती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जिस प्रकार पंगत में भोजन कर लेने के बाद परोसना भी चाहिए, इसके अलावा भोजन ढका हुआ होना चाहिए एवं भूखे को भी खिलाना आवश्यक है । शिक्षा ग़हण, धर्मोपदेश,आग़ह होने पर ही, जिज्ञासु होना आवश्यक है। अतः जीवन में धर्मोपदेश के लिए गुरु और स्वाध्याय यानी जिनवाणी से ही धर्म का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।
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धर्मोपदेश का तात्पर्य जीवों को उत्तम सुख की प्राप्ति हो तो ऐसे वीतराग धर्म का उपदेश नाम का स्वाध्याय होता है,इसकी पात्रता सिर्फ गुरुओं और जिनवाणी से ही प्राप्त होती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जिस प्रकार पंगत में भोजन कर लेने के बाद परोसना भी चाहिए, इसके अलावा भोजन ढका हुआ होना चाहिए एवं भूखे को भी खिलाना आवश्यक है । शिक्षा ग़हण, धर्मोपदेश,आग़ह होने पर ही, जिज्ञासु होना आवश्यक है। अतः जीवन में धर्मोपदेश के लिए गुरु और स्वाध्याय यानी जिनवाणी से ही धर्म का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।