धर्म दर्द देता है,
यदि सुख मिल रहा है तो वह धर्म है ही नहीं,
यही कारण है कि प्राय: लोगों के जीवन में धर्म नहीं आ पाता है ।
क्योंकि धर्म तो इंद्रियों के संयम/ त्याग/ तप से होता है, मौज/ मस्ती में नहीं ।
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धर्म सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है या जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख तक पहुचाता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि दुखों में या सुखों में धर्म मानते नहीं है,इसी कारण लोगों में धर्म नहीं आ पाता है क्योंकि धर्म तो इन्द़ियो के संयम, त्याग,तप से होता है जबकि मौज मस्ती से नहीं होता है। अतः जीवन में धर्म का आलंबन लेना आवश्यक है ताकि दुःख सुख में समता के भाव रह सकें ।
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धर्म सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है या जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख तक पहुचाता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि दुखों में या सुखों में धर्म मानते नहीं है,इसी कारण लोगों में धर्म नहीं आ पाता है क्योंकि धर्म तो इन्द़ियो के संयम, त्याग,तप से होता है जबकि मौज मस्ती से नहीं होता है। अतः जीवन में धर्म का आलंबन लेना आवश्यक है ताकि दुःख सुख में समता के भाव रह सकें ।