किसी एक विषय में निरंतर रूप से ज्ञान का रहना ध्यान है।
मन को विषयों से हटाने का पुरुषार्थ करना/भटकते हुये मन को रोकना ही ध्यान है।
ध्यान लगाना नहीं, मोड़ना सीखना है, सीखे हुये को छोड़ना सीखना है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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4 Responses
ध्यान का तात्पर्य चित्त की एकाग्रता का नाम है।
अतः ध्यान के लिए मन को विषयों से हटाने का पुरुषार्थ करना आवश्यक है।यह भी कथन सत्य है कि मन को रोकना ही ध्यान है। अतः ध्यान के लिए मन को समझाने का प़यास से ही चित्त एकाग्रता में वृद्धि होगी ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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ध्यान का तात्पर्य चित्त की एकाग्रता का नाम है।
अतः ध्यान के लिए मन को विषयों से हटाने का पुरुषार्थ करना आवश्यक है।यह भी कथन सत्य है कि मन को रोकना ही ध्यान है। अतः ध्यान के लिए मन को समझाने का प़यास से ही चित्त एकाग्रता में वृद्धि होगी ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
“सीखे हुये को छोड़ना सीखना है” ka kya meaning hai, please ?
अभी तक सीखा क्या है ?
राग-द्वेष, संसार बढ़ाना।
क्या इन सीखों के साथ ध्यान लग सकता है ?
Okay.