परमात्मा के 2 भेद-
1. कार्य-परमात्मा – सिद्ध
2. कारण-परमात्मा – अनेक भेद – अरहंत,
मुनि, देशव्रती – चलने के साहस की अपेक्षा,
अविरत सम्यग्दृष्टि – ज्ञान/विश्वास की अपेक्षा,
मिथ्यादृष्टि – भविष्य की अपेक्षा,
अभव्य – शक्त्ति की अपेक्षा।
मुनि श्री सुधासागर जी
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One Response
परमात्मा का तात्पर्य सर्व दोषों से रहित शुद्ध आत्मा होती है,यह अर्हन्त एवं सिद्ध भगवान् होते हैं।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि परमात्मा के दो भेद होते हैं, कार्य-परमात्मा सिद्ध,दूसरा कारण-परमात्मा अनेक भेद, जैसे अर्हन्त, मुनि,देशव़ती। इनमें चलने के साहस की अपेक्षा अवरति सम्यग्द्वष्टि होते हैं। इनमें मिथ्याद्वष्टि नहीं होते हैं।
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परमात्मा का तात्पर्य सर्व दोषों से रहित शुद्ध आत्मा होती है,यह अर्हन्त एवं सिद्ध भगवान् होते हैं।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि परमात्मा के दो भेद होते हैं, कार्य-परमात्मा सिद्ध,दूसरा कारण-परमात्मा अनेक भेद, जैसे अर्हन्त, मुनि,देशव़ती। इनमें चलने के साहस की अपेक्षा अवरति सम्यग्द्वष्टि होते हैं। इनमें मिथ्याद्वष्टि नहीं होते हैं।