पर्यावरण की रक्षा की उत्कृष्ट साधना जैन संतों में दिखती है—
साधनों का कम से कम प्रयोग; अधिक से अधिक रक्षा,
यदि आहार लेते समय मुँह में बीज टूट जाये तो आहार छोड़ देते हैं/प्रायश्चित लेते हैं कि इस बीज में वृक्ष बनने की संभावना थी, वह मेरे निमित्त से समाप्त हो गयी ।
चिंतन
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One Response
उक्त कथन सत्य है कि पर्यावरण की उत्कृष्ट साधना जैन संतों में ही दिखती है। साधु कम से कम प़योग करते हैं एवं अधिक से अधिक रक्षा, यदि आहार में बीज मुंह में टूट जाता है तो आहार छोड़ देते हैं, और इसका प़ायश्चित लेते हैं, क्योंकि उस बीज से वृक्ष बनने की सम्भावना रहती है। जो उनके निमित्त से समाप्त हो गई।
अतः सभी श्रावकों को पर्यावरण की रक्षा करना आवश्यक है। जैसे पेड़ काटना,जल को कमसे कम उपयोग आदि उन वस्तुओं का त्याग करना चाहिए जिनसे पर्यावरण की हानि होती है।
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उक्त कथन सत्य है कि पर्यावरण की उत्कृष्ट साधना जैन संतों में ही दिखती है। साधु कम से कम प़योग करते हैं एवं अधिक से अधिक रक्षा, यदि आहार में बीज मुंह में टूट जाता है तो आहार छोड़ देते हैं, और इसका प़ायश्चित लेते हैं, क्योंकि उस बीज से वृक्ष बनने की सम्भावना रहती है। जो उनके निमित्त से समाप्त हो गई।
अतः सभी श्रावकों को पर्यावरण की रक्षा करना आवश्यक है। जैसे पेड़ काटना,जल को कमसे कम उपयोग आदि उन वस्तुओं का त्याग करना चाहिए जिनसे पर्यावरण की हानि होती है।