Category: चिंतन

भोग / सुविधायें

भोगादि से भी कुछ सकारात्मक ले सकते हैं। इनका भी महत्व होता है। भोग/ सुविधाओं को पूरा न भोगने से इच्छाओं का निरोध होता है,

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धर्म की साधना

धर्म की साधना का उद्देश्य सत्य को पाना बाद में, पहले झूठ को पहचानना/ छोड़ना होना चाहिये। चिंतन

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कर्म

कर्म को “बेचारा” कहा है। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी (बेचारा ही तो है… लम्बे अरसे तक आत्मा में कैद रहता है बिना किसी कसूर के।

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शरीर / आत्मा

क्या हम ऐसी जगह को छोड़ना नहीं चाहेंगे जहाँ सड़न/ बदबू आना शुरू हो रही हो ? यदि हाँ, तो आत्मा मरते हुए शरीर को

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अवस्थायें

1. दुष्टता – द्वेष रूप/ गंदा पानी 2. इष्टता – राग रूप/ सादा पानी 3. माध्यस्थता – वीतरागता रूप/ नमी रहित चिंतन

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जीवन

डायरी के ऊपर और आखिर में जिल्द होती है। Solid/ निश्चित, इन पर कुछ लिख नहीं सकते। ऊपर बहुत कुछ पहले से लिखा रहता है

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आत्मा में अस्पर्शन

आत्मा में अस्पर्शन, स्पर्शन नहीं ! पर वह शरीर को स्पर्श कर रही है ? आत्मा तो स्पर्श करती है, हम उसे स्पर्श नहीं कर

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सुख

सुख चाहते हो तो सद्‌गृहस्थ बनो। सच्चा सुख चाहते हो तो साधु बनो। चिंतन

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मोह

गधे को देखा, लगातार बोझा ढो रहा था, मार भी खा रहा था। पूरा जीवन उसका ऐसे ही निकलेगा। फिर कोई पूछेगा भी नहीं। हमारी

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भात / बात

भात (भोजन) को देखभाल कर कि विषाक्त/ ज्यादा तीखा/ बदबूदार न हो, 32 बार मुँह में चबाया जाता है, तब शरीर को लाभकर होता है,

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मंगल आशीष

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May 2, 2024

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