भाव / उपयोग
पारिणामिक भाव चैतन्य भाव के हमेशा साथ (भव्यत्व या अभव्यत्व/ जीवत्व)।
उपयोग अनेक तरह से परिवर्तित, भावात्मक परिणति भाव से उपयोग में परिवर्तन।
उपयोग में सब प्रकार के भाव (पाँचों) क्योंकि अनुभूति उपयोग ही करेगा। हालांकि हैं दोनों जीव के ही स्वभाव।
चैतन्य का ही परिणाम उपयोग है। चैतन्य में परिवर्तन नहीं, अंतरंग/बाह्य निमित्त के परिवर्तन से उपयोग में परिवर्तन।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/50)
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भाव एवं उपयोग को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के लिए चैतन्य का परिणाम ही सही उपयोग है।
Third para me ‘दोनों’ ka kya abhipraay hai ?
उपयोग और अनुभूति।
Okay.