पुण्य-कर्म को क्षय करने के लिये मन बनाना होगा, संक्लेश भाव होंगे, उससे पाप-बंध होगा,
तो क्या पुण्य समाप्त करने के लिये पाप करोगे !
मुनि श्री सुधासागर जी
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पुण्य—जो आत्मा को पवित्र बनाता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है उसको पुण्य कहते हैं अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं।। पाप—जो आत्मा को शुभ से बचाता है उसे पाप कहते हैं अथवा दूसरो के प़ति अशुभ परिणाम होना भी पाप है, पाप पांच प़कार के होते हैं, हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग़ह। यह कथन सत्य है कि पुण्य-कर्म को क्षय करने के लिए मन बनाना होगा, संक्लेष के भाव होना पाप बंध होता है।अतः जीवन में पुण्य की प़ाप्ति होने पर पाप करने से बचना चाहिए।जीवन में पाप काटने का प़यास करना होगा ।
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पुण्य—जो आत्मा को पवित्र बनाता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है उसको पुण्य कहते हैं अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं।। पाप—जो आत्मा को शुभ से बचाता है उसे पाप कहते हैं अथवा दूसरो के प़ति अशुभ परिणाम होना भी पाप है, पाप पांच प़कार के होते हैं, हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग़ह। यह कथन सत्य है कि पुण्य-कर्म को क्षय करने के लिए मन बनाना होगा, संक्लेष के भाव होना पाप बंध होता है।अतः जीवन में पुण्य की प़ाप्ति होने पर पाप करने से बचना चाहिए।जीवन में पाप काटने का प़यास करना होगा ।