ऐसी प्रतिमाएँ जो थोड़े समय के लिये जिनमुद्रा में/ बिना श्रृंगार के रहतीं हैं, दर्शनीय तो हो सकतीं हैं, पूज्यनीय नहीं/ सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में निमित्त नहीं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तीत्थर भावणा – गाथा 5)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने पूज्यनीय एवं दर्शनीय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। भगवान् की मूर्ति पूज्यनीय होती है, बाकी मूर्तियों को दर्शनीय समझना चाहिए।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने पूज्यनीय एवं दर्शनीय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। भगवान् की मूर्ति पूज्यनीय होती है, बाकी मूर्तियों को दर्शनीय समझना चाहिए।