प्रकृति

नई शिक्षा का प्रचार प्रसार
जोर-शोर से हुआ;

चिड़िया ने पानी में तैरने की
कोशिश की,

मछली ने पेड़ों पर
चढ़ने की,

मयूर के रंग-बिरंगे पंख देखकर…
कोयल ने वैसा बनने की कोशिश की…

सब की परीक्षा हुई;

चिड़िया डूबते-डूबते बची…

मछली तड़प तड़प कर
मरणासन्न हो गई…

कोयल बदरंग दिखने लगी…

सब अपनी अपनी निधि
खो बैठे…

अपनी प्रकृति खोकर
कोई कहीं का नहीं रहता… ।

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One Response

  1. This is very true; prakrati ka swabhaav jo hota hai usako badal nahin sakate hain. Prakrati ka jo nature hai vahi rahega.

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