मति/श्रुत ज्ञान तो परोक्ष-ज्ञान है तो प्रामाणिक कैसे ?
क्योंकि सम्यग्ज्ञान, केवल-ज्ञान पर आधारित होता है, इसलिये ये भी प्रामाणिक है।
सिर्फ केवलज्ञान को प्रामाणिक कह देते तो आज प्रामाणिक-ज्ञान होता ही नहीं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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प़माणिक ज्ञान के दो भेद हैं, स्वार्थ और परार्थ। श्रुतज्ञान को छोड़कर शेष चारों ज्ञान स्वार्थ प़माण है,श्रुतज्ञान में स्वार्थ व परार्थ दोनों होते हैं। अतः मुनि महाराज जी ने जो कथन किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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प़माणिक ज्ञान के दो भेद हैं, स्वार्थ और परार्थ। श्रुतज्ञान को छोड़कर शेष चारों ज्ञान स्वार्थ प़माण है,श्रुतज्ञान में स्वार्थ व परार्थ दोनों होते हैं। अतः मुनि महाराज जी ने जो कथन किया गया है वह पूर्ण सत्य है।