भाग्य / पुरुषार्थ
आदिनाथ भगवान के आंगन में कल्पवृक्ष बाकी थे, पर उन्होंने तीर्थंकर-राहत-कोष से किसी को कुछ नहीं दिया बल्कि षट-कर्म सिखाये।
देव भाग्य भरोसे, 12 योजन तय करके सिद्धालय नहीं जा पाते, मध्यलोक आ पुरुषार्थ करके 7 राजू की यात्रा करके सिद्धालय पहुंच पाते हैं।
मोक्षमार्ग में बासी रोटी (भाग्य की) नहीं खायी जाती, श्रमण (श्रम करके) ही मोक्ष जाते हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि आदिनाथ भगवान भाग्य भरोसे नहीं रहे थे, बल्कि धर्म पुरुषार्थ करके ही केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। अतः आदिनाथ ही प़थम तीर्थंकर हुए थे, जिन्होंने धर्म की स्थापना की गई थी एवं मनुष्यों या हर प्राणी को जीवन में जीने की कला बताई गई थी। भगवान् द्वारा ही शिक्षा,खेती, व्यवसाय आदि बताया गया था। आदिनाथ भगवान ने ही धर्म पुरुषार्थ का रास्ता बताया गया था,जो आज भी सभी के लिए काम आ रहा है।