पहले गुणस्थान में औदायिक भाव मुख्यता से,
द्वितीय गुणस्थान में पारिमाणिक भाव मुख्यता से,
तृतीय गुणस्थान में क्षायोपशमित भाव मुख्यता से,
चतुर्थ गुणस्थान में औपशमिक, क्षयोशमिक तथा क्षायिक भाव क्योंकि तीनों सम्यग्दर्शन सम्भव हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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3 Responses
‘पहले गुणस्थान में औदायिक भाव मुख्यता से,
द्वितीय गुणस्थान में पारिमाणिक भाव मुख्यता से’ ।
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‘पहले गुणस्थान में औदायिक भाव मुख्यता से,
द्वितीय गुणस्थान में पारिमाणिक भाव मुख्यता से’ ।
In donon ka example denge, please ?
पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व के उदय से मिथ्यादर्शन के भाव।
दूसरे में किसी प्रकृति के उदय की मुख्यता न होने से पारिणामिक कहा है।
Okay.