क्षयोपशमिक-भाव… जो ज्ञान उत्पन्न हो गया है तथा जो उत्पन्न नहीं हुआ हो, उनके सद्भाव से उत्पन्न भाव।
औदयिक–भाव…. कषाय, शरीरादि से जुड़े रहते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र- 2/25)
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भाव को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। जैन धर्म भावों पर आधारित है, अतः जीवन में विशुद्ध भाव रखना परम आवश्यक है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भाव को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। जैन धर्म भावों पर आधारित है, अतः जीवन में विशुद्ध भाव रखना परम आवश्यक है।
‘जो उत्पन्न नहीं हुआ हो’, uska सद्भाव kaise rahega ? Ise clarify karenge, please ?
अज्ञान का सद्भाव।
Okay.