भाषण / उपदेश
भाषण सिर्फ सुनने, स्वार्थ हेतु।
उपदेश ग्रहण करने, स्व-पर कल्याण हेतु।
उप = निकट पहुँचे + देश = देशना।
यह मुख्यत: गुरु (साधु) का काम।
(श्री षटखण्डागम टीका श्री धवला जी – आचार्य श्री वीरसेन जी)
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (ति.भा. गाथा- 51)
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने भाषण एवं उपदेश का अन्तर बताया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए उपदेश को अपने हृदय में बिठाना परम आवश्यक है।