इन्द्रिय भोग निम्ब (नीम) के पुष्प के समान—गंध अच्छी, स्वाद कड़वा।
पाप के भोग में संताप तात्कालिक, पुण्य के भोग में दीर्घकालीन का बीजारोपण; आकुलता दोनों में।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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4 Responses
इन्द्रियों के भोगांक्षा जीवन को बर्बाद करती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि इन्दिय भोग नीम के पुष्प के समान, गंध अच्छी लगती है लेकिन स्वाद कड़वा होता है।पाप के भोग में तात्कालिक अच्छा लगता है, यह जीवन में दीर्घकालीन का बीजारोपण होता है, इससे जीवन में आकुलता हमेशा रहेगी। अतः यह सब पाप की श्रेणी में आते हैं, अतः जीवन को सुखी बनाना है तो,इसका संकल्प लेकर त्याग करना चाहिए ताकि जीवन में कल्याण हो सकता है।
प्रायः विषय-भोग के बाद का पछतावा ही तो संताप है।
पर पुण्य भोगने के बाद पछतावा नहीं, खुशी होती है। लेकिन longrun में ये खुशी ही कर्मबंध का कारण बनती है।
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इन्द्रियों के भोगांक्षा जीवन को बर्बाद करती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि इन्दिय भोग नीम के पुष्प के समान, गंध अच्छी लगती है लेकिन स्वाद कड़वा होता है।पाप के भोग में तात्कालिक अच्छा लगता है, यह जीवन में दीर्घकालीन का बीजारोपण होता है, इससे जीवन में आकुलता हमेशा रहेगी। अतः यह सब पाप की श्रेणी में आते हैं, अतः जीवन को सुखी बनाना है तो,इसका संकल्प लेकर त्याग करना चाहिए ताकि जीवन में कल्याण हो सकता है।
Can meaning of “पाप के भोग में संताप तात्कालिक, पुण्य के भोग में दीर्घकालीन का बीजारोपण” be explained please ?
प्रायः विषय-भोग के बाद का पछतावा ही तो संताप है।
पर पुण्य भोगने के बाद पछतावा नहीं, खुशी होती है। लेकिन longrun में ये खुशी ही कर्मबंध का कारण बनती है।
Okay.