खाना – खाया जाता है – तामसिक – साधारणजन करते हैं।
भोजन – किया जाता है – राजसिक – रुचि के अनुरूप – संयमी।
आहार – लिया जाता है – सात्विक – अपनी रुचि से नहीं, जो मिल गया ले लिया पर शुद्ध आहार, शुद्ध लोगों से – मुनिराज को दिया जाता है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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भोजन के लिए जो परिभाषा दी गई है वह पूर्ण सत्य है। जीवन में मनुष्य को भोजन करना चाहिए रुचि एवं संयमी के भाव होना चाहिए। आहार शुद्ध तो मुनियों के द्वारा लिया जाता है। अतः जीवन में मनुष्य को भी भोजन सात्विक,जो तामसिक नहीं होना चाहिए। तामसिक भोजन से धर्म ध्यान करना मुश्किल होता है।
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भोजन के लिए जो परिभाषा दी गई है वह पूर्ण सत्य है। जीवन में मनुष्य को भोजन करना चाहिए रुचि एवं संयमी के भाव होना चाहिए। आहार शुद्ध तो मुनियों के द्वारा लिया जाता है। अतः जीवन में मनुष्य को भी भोजन सात्विक,जो तामसिक नहीं होना चाहिए। तामसिक भोजन से धर्म ध्यान करना मुश्किल होता है।