“सुख-दु:ख के लिए कर्म कारण हैं” – यह तो प्रारम्भिक कथन है।
असली कारण तो कर्मों से प्रभावित मन है, वर्तमान तथा भविष्य दोनों के लिये।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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मन नाना प्रकार के विकल्प जाल को कहते हैं, अथवा गुण दोष का विचार व स्मरण कार्य करना मन का कार्य है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि सुख दुःख के लिए कर्म कारण होता है, लेकिन यह प्रारम्भिक कथन है। लेकिन असली कारण तो कर्मों से प़भावित मन होता है,यह वर्तमान एवं भविष्य के लिए भी है। अतः मन को साधना ही जीवन का महत्वपूर्ण स्थान है, जिससे आत्मा का कल्याण हो सकता है।
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मन नाना प्रकार के विकल्प जाल को कहते हैं, अथवा गुण दोष का विचार व स्मरण कार्य करना मन का कार्य है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि सुख दुःख के लिए कर्म कारण होता है, लेकिन यह प्रारम्भिक कथन है। लेकिन असली कारण तो कर्मों से प़भावित मन होता है,यह वर्तमान एवं भविष्य के लिए भी है। अतः मन को साधना ही जीवन का महत्वपूर्ण स्थान है, जिससे आत्मा का कल्याण हो सकता है।