मोह
अमियाँ तोड़ने के लिये बच्चे पत्थर मारते हैं, अमियाँओं के टुकड़े गिरते हैं पर अमियाँ डाल को छोड़तीं नहीं। पकने पर हवा के झौंके से भी डाल को छोड़ देती हैं।
मोह में हमारा भी यही हाल होता है पर मन में वैराग्य पकने पर ज़रा से बहाने से घरबार छूट जाता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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मोह का तात्पर्य जिस कर्म उदय से जीव हित अहित एवं विवेक रहित होता है।यह सब राग द्वेष के द्वारा होता है। अतः जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। यह मोह के द्वारा ही होता है, लेकिन मन में वैराग्य की भावना होने पर ही उससे पका फल अपने जीवन मिल जाता है।