योग्य-उपादान + योग्य निमित्त से ही कार्य की सिद्धि होती है ।
उपादान —– शाश्वत, जैसे सूखी मिट्टी/ भव्य जीव;
योग्य-उपादान – तात्कालिक, जैसे गीली मिट्टी/ सम्यग्दर्शन के सम्मुख ।
कभी उपादान प्रमुख हो जाता है, कभी निमित्त ।
इष्टोपदेश – कारिका 2 (आचार्य वसुनंदी जी)
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One Response
उपादान कारण का मतलब किसी कार्य के होने में जो स्वयं उस कार्य के परिणमन करने की क्षमता , जैसे रोटी के बनने में आटा, उपादान होता है।
निमित्त का मतलब जो कार्य में सहयोग करे या जिसके बिना कार्य न हो, अतः उचित निमित्त के होने पर या होने से तदानुसार ही कार्य होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि योग्य उपादान और योग्य निमित्त से ही कार्य की सिद्धि होती है। उपादान में शाश्र्वत जैसे सूखी मिट्टी और भव्य जीव जबकि योग्य-उपादान यानी तात्कालीन जैसे गीली मिट्टी या सम्यग्दर्शन के सम्मुख। कभी उपादान प़मुख हो जाता है,या कभी निमित्त होता है।
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उपादान कारण का मतलब किसी कार्य के होने में जो स्वयं उस कार्य के परिणमन करने की क्षमता , जैसे रोटी के बनने में आटा, उपादान होता है।
निमित्त का मतलब जो कार्य में सहयोग करे या जिसके बिना कार्य न हो, अतः उचित निमित्त के होने पर या होने से तदानुसार ही कार्य होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि योग्य उपादान और योग्य निमित्त से ही कार्य की सिद्धि होती है। उपादान में शाश्र्वत जैसे सूखी मिट्टी और भव्य जीव जबकि योग्य-उपादान यानी तात्कालीन जैसे गीली मिट्टी या सम्यग्दर्शन के सम्मुख। कभी उपादान प़मुख हो जाता है,या कभी निमित्त होता है।