ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार के बाद वीर्याचार इसलिये लिया गया है ताकि चारों निर्दोष रहें ।
वीर्याचार उनमें Extra Fource भरता है जैसे दर्शनाचार में पूरी विधिपूर्वक दर्शन कराने में ।
संसारी अनर्थ क्रियाओं से क्षयोपशम और वीर्याचार घटता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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वीर्याचार का तात्पर्य अपनी शक्ति को न छिपाकर उत्साह पूर्वक तप आदि पंचाचार का पालन करना है।
अतः मुनि महाराज जी का कथन पूर्ण सत्य है।
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वीर्याचार का तात्पर्य अपनी शक्ति को न छिपाकर उत्साह पूर्वक तप आदि पंचाचार का पालन करना है।
अतः मुनि महाराज जी का कथन पूर्ण सत्य है।