वैयावृत्ति से –
1. समाधि की प्राप्ति
2. प्रसन्नता, सो अंतरंग तप हुआ
3. निर्विचिकित्सा
4. प्रभावना/प्रवचन वात्सल्य
आचार्य श्री विद्यासागर जी – साधर्मी = जो अरहंत भगवान की वाणी में श्रद्धा रखता हो, उससे वात्सल्य>>प्रभावना ।
5. तीर्थंकर प्रकृति बंध
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
Share this on...
One Response
वैयावृति एक तप होता है। वैयावृति में आचार्य, उपाध्याय, साधुओं एवं तपस्यों को जब वह रोगादि होने पर उनकी आहार चर्या एवं औषधि आदि के द्वारा सेवा की जाती है।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है कि जो वैयावृति तप करता है,उसको इन सभी बातों का फल अवश्य मिलता है। जीवन में वैयावृति अवश्य करना चाहिए, ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
One Response
वैयावृति एक तप होता है। वैयावृति में आचार्य, उपाध्याय, साधुओं एवं तपस्यों को जब वह रोगादि होने पर उनकी आहार चर्या एवं औषधि आदि के द्वारा सेवा की जाती है।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है कि जो वैयावृति तप करता है,उसको इन सभी बातों का फल अवश्य मिलता है। जीवन में वैयावृति अवश्य करना चाहिए, ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।