वैराग्य
कड़क सर्दी में आचार्य श्री विद्यासागर जी के शरीर में कांटे उठ रहे थे, भक्त के इंगित करने पर आ. श्री ने कहा –
शरीर का स्वभाव ही कांंटों वाला है, इसमें फूल थोड़े ही ना खिलेंगे !
शरीर को जानने से नहीं, बल्कि उसके स्वभाव को जानने से वैराग्य होता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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मोक्ष का मतलब समस्त कर्मों से रहित आत्मा की परम विशुद्ध अवस्था का नाम होता है।मोक्ष जाने के लिए वैराग्य का रास्ता अपनाना आवश्यक है। वैराग्य में मुनि पद की दीक्षा लेना आवश्यक है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने मुनि पद ग़हण किया है,यह मोक्ष मार्ग का रास्ता है। बगीचे में फूल कांटों के बीच खिलता है।फूल की प्राप्ति में कांटों से ही उलझना होगा। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने शरीर को जानने में नहीं बल्कि उसके स्वभाव को जानने के लिए वैराग्य धारण किया है।