सल्लेखना
मुनि श्री वैराग्यसागर जी सन् 1984 में आहार जी में 4 माह से सल्लेखना करते हुये जल पर आ गये थे।
अगले दिन जल लेते हुये अंजुली नहीं बंध रही थी।
उनकी परीक्षा लेने पूछा… गिलास से पीलें !
उन्होंने जल का भी त्याग कर दिया।
3 दिन बाद उन्होंने धर्म सुनते हुए/ शांत भाव से देह त्याग कर दिया।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी ने सल्लेखना का उदाहरण बताया गया है! अतः जीवन में श्रमण को सल्लेखना आवश्यक है जबकि श्रावकों को कम से कम समाधिमरण के भाव रहना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!