सल्लेखना
सल्लेखना के आखिरी 4 साल में शरीर को कष्ट सहिष्णु बनाना होता है, इससे सहन शक्ति बढ़ती है/ शरीर आरामतलब नहीं बनता है।
फिर रसों (मीठा/ नमकीनादि) को छोड़ते हैं। तब छाछ, तत्पश्चात जल, अंत में उसका भी त्याग कर देते हैं।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी)
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मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी ने सल्लेखना का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। मुनियों के लिए सल्लेखना की परम आवश्यकता होती है। श्रावकों को समाधिमरण की कामना करते रहना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।