1. द्वादशांग का ज्ञान
2. भगवान की भक्ति – सम्यग्दर्शन
3. शुद्धात्म स्वरूप में अविचल परिणाम
4. केवली समुद्-घात
श्री समयसार जी-पेज-176
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संसार- – संसरण आवागमन करने को कहते हैं जिसका अर्थ परिभ्रमण या परिवर्तन है, अथवा कर्म के फल स्वरुप आत्मा को भवान्तर को प्राप्त होना संसार है। कर्म के वशीभूत हुआ जीव चारों गतियों में परिभ्रमण करता है। अतः यह कथन सत्य है दिये हुए चारों निमित्त संसार छोड़ने में सहायक होते हैं। लेकिन चार घातियों कर्मों के क्षय होने से जिन्हें केवल ज्ञान प्राप्त होता हैं वह केवली या अर्हंन्त भगवान् कहते हैं। अतः शुद्ध आत्मा की प्राप्ति होना का प़यास करना चाहिए।
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संसार- – संसरण आवागमन करने को कहते हैं जिसका अर्थ परिभ्रमण या परिवर्तन है, अथवा कर्म के फल स्वरुप आत्मा को भवान्तर को प्राप्त होना संसार है। कर्म के वशीभूत हुआ जीव चारों गतियों में परिभ्रमण करता है। अतः यह कथन सत्य है दिये हुए चारों निमित्त संसार छोड़ने में सहायक होते हैं। लेकिन चार घातियों कर्मों के क्षय होने से जिन्हें केवल ज्ञान प्राप्त होता हैं वह केवली या अर्हंन्त भगवान् कहते हैं। अतः शुद्ध आत्मा की प्राप्ति होना का प़यास करना चाहिए।