समता भाव
यदि सामने वाला समता भाव के योग्य न हो तो ?
समता भाव अपनी योग्यता के अनुसार धारण किया जाता है न कि सामने वाले की योग्यता के अनुसार ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
यदि सामने वाला समता भाव के योग्य न हो तो ?
समता भाव अपनी योग्यता के अनुसार धारण किया जाता है न कि सामने वाले की योग्यता के अनुसार ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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समता भाव रखना जीवन का कल्याण करना है। समता में शत्रु-मित्र में, सुख-दुख में, लाभ-अलाभ और जय-पराजय में, हर्ष-विवाद नहीं करना या साम्य रखना ही समता कहलाता है।