सम्बोधन
राम को ईशांतराज (भील) “तू” से संबोधन कर रहे थे ।
लक्ष्मण को अच्छा नहीं लगा ।
राम ने कहा – इन्होंने अपनी (भक्त) और मेरे (साध्य) बीच की दूरी समाप्त कर ली है ।
भाषा से ज्यादा भाव महत्वपूर्ण होते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
राम को ईशांतराज (भील) “तू” से संबोधन कर रहे थे ।
लक्ष्मण को अच्छा नहीं लगा ।
राम ने कहा – इन्होंने अपनी (भक्त) और मेरे (साध्य) बीच की दूरी समाप्त कर ली है ।
भाषा से ज्यादा भाव महत्वपूर्ण होते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
One Response
जहां पर प़ेम पूवक॓ भक्ति होती है, उसमें वह किसी भी रुप सम्बोधन करता है, तब सामने वाला सहष॓ स्वीकार कर लेता है। जिस जगह भाव होते हैं उधर भाषा का महत्व नहीं होता है। मन के भावों से आपस की दूरियां मिट जाती हैं।