सल्लेखना
श्री कर्मानंद जी (जैनेतर) जैन धर्म से बहुत प्रभावित थे पर सल्लेखना को आत्मघात मानते थे। थोड़े दिन बाद उन्हें बहुमूत्र रोग हो गया। अशुद्धि के कारण वे धार्मिक क्रियायें नहीं कर पाते थे। अब उनको जैन धर्म पर पूर्ण श्रद्धा हो गयी। 4 दिन में वे निरोग हो गये। बाद में वे क्षुल्लक दीक्षा ले सल्लेखना पूर्वक मरण को प्राप्त हुए।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी ने सल्लेखना का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः सल्लेखना के लिए जैन धर्म पर पूर्ण श्रद्वा होना परम आवश्यक है।