साधु/व्रती-पद
साधु/ व्रती सदैव याद रखें >>
दीक्षा अपने बल/भरोसे पर ली जाती है, औरों/समाज के बल पर नहीं।
व्रती को अपने व्रतों के नियंत्रण में रहना चाहिये, समाज के नियंत्रण में नहीं।
इसके लिये साधु को गृहस्थों से दूरी बना कर रखना चाहिये।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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साधु का तात्पर्य निर्ग्रन्थ मुनि होते हैं।इनको अठ्ठाईस मूल गुणों का पालन करना होता है,यह रत्नत्रय की आराधना करते हुए संयमित जीवन जीते हैं।इसी प्रकार वृत्ति को कुछ नियम लेकर उनका पालन करना अनिवार्य होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि साधुओं और वृतियों को जो सावधानी आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा है,उसका पालन करना अनिवार्य होता है ताकि जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकते हैं।