सामूहिक / व्यक्तिगत
अधिक प्रकाशित दीपक वाले के साथ चलने में लाभ तो है,
पर जब वह अपने रास्ते या अपनी चाल से चलकर आपसे अलग हो जायेगा तब तुम रास्ता भटक जाओगे ।
सो उसके सानिध्य में रहकर अपना दिया प्रकाशित कर लो ।
धर्म सामूहिक भी है और व्यक्तिगत भी ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि धर्म सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों भी होते हैं। जीवन में कुछ क़ियायें सामूहिक होती है एवं कुछ क़ियायें व्यक्तिगत होती हैं। सामूहिक में विधान, पंचकल्याणक आदि होते हैं जिसके द्वारा एक दूसरे की भटकने की आवश्यकता नहीं होती है। कुछ क़िया व्यक्तिगत होती है जैसे पूजा, सामायिक आदि होते हैं। जैन धर्म में सभी क़ियायो में प़त्येक जीव की कल्याण की भावना होती है। कुछ क़ियायें अकेले होती है जैसे अभिषेक ,आहार देना, आदि होती हैं जो व्यक्तिगत होती है, लेकिन उसकी अनुमोदना करने पर उसका फल भी मिलता है।