जरा / अजर / नजर
जरा* न चाहूँ,
अजर** बनूँ,
नजर*** चाहूँ ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* रोग/थोड़ा भी
** निरोगी
*** गुरुकी/सम्यग्दृष्टि
जरा* न चाहूँ,
अजर** बनूँ,
नजर*** चाहूँ ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* रोग/थोड़ा भी
** निरोगी
*** गुरुकी/सम्यग्दृष्टि
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने इन तीनों शब्दों की व्याख्या की है, वह पूर्ण रूप से सत्य है।
ज़रा का मतलब न चाहुं,अज़र का मतलब बनने का प्रयास,नज़र का मतलब मैं उसको चाहता हूं। इससे प़तीत होता है कि जिसकी नज़र गुरु की और सम्यग्द्वष्टि पर होगी वही जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।