आत्मा / रागादि

आत्मा और रागादि का संबंध अशुद्ध निश्चय नय से कहा जाता है।
इसे व्यवहार नय भी कहते हैं।

ज्ञानशाला

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4 Responses

  1. जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणो से वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है।
    राग—इष्ट पदार्थो में प़ीति या हर्ष मय परिणमन होना होता है।
    व्यवहार-नय को संग़ह-नय के द्वारा ग़हण किये गए पदार्थो का विधी पूर्वक भेद करना होता है।
    अतः यह सत्य है कि आत्मा और रागादि का संबंध अशुद्व निश्चय नय से कहा जाता है और इसे व्यवहार नय भी कहते हैं।

    1. निश्चयनय तो शुद्ध को ही विषय बनाता है।
      इसलिए जहाँ आत्मा है वहां निश्चयनय होगा लेकिन यहाँ आत्मा राग से लिप्त है, इसलिये इसे अशुद्ध-निश्चयनय कहेंगे।

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