आत्मा की पहचान प्राणों से होती है इसलिए व्यवहार नय से उसे “प्राणी” कहा।
जिस अवस्था में १० प्राणों में से कोई प्राण धारण नहीं करती, निश्चय-नय से सिर्फ चैतन्य-प्राण को धारण करती है।
ऐसे ही गतियों में भ्रमण करने से उसे “जंतु” कहते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा – 366)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने आत्मा का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में आत्मा को जानकर अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहिए।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने आत्मा का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में आत्मा को जानकर अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहिए।
आत्मा, निश्चय-नय से सिर्फ चैतन्य-प्राण को kab धारण करती है ?
जब दसों प्राण छूट जाते हैं, सिद्ध अवस्था में।
Okay.