आम्नाय
आम्नाय – पाठ को शुद्धिपूर्वक पुन: पुन: दोहराना।
अनेक ग्रंथ पढ़ने से बेहतर है 2-4 ग्रंथ बार-बार पढ़ना। इससे विषय स्पष्ट होता है। आम्नाय/स्वाध्याय में सामूहिक पाठ करना चाहिये। इस में कई फ़ायदे हैं –
1. अलग-अलग तरह का आनंद आता है।
2. सभी के भाव शुभ और एक से होते हैं।
3. कर्म निर्जरा अधिक होती है।
बिना रुके पाठ करना महत्त्वपूर्ण नहीं। आराम से, रुक-रुक कर, मनोयोग पूर्वक पाठ करना अधिक प्रभावकारी है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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उच्चारण की शुद्धी पूर्वक पाठ का पुनः दुहराना आम्नाय नाम का स्वाध्याय होता है
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है। आम्नाय में स्वाधाय सामूहिक करना चाहिए, इसमें अलग अलग आनंद आता है, सही के भाव शुद्ध व एक से होते हैं एवं कर्म निर्जरा अधिक होती है। अतः आराम से रुक रुक कर मनोयोग करना ही प्रभावकारी होता है।