आलोचना
आलोचना की आदत पड़ जाती है (प्राय: पीठ पीछे),
निंदा → सामने वाले को नीचा दिखाने को (प्राय: व्यक्ति के सामने),
समालोचना → सामने वाले को सुधारने, उसकी अच्छाइयां तथा कमजोरियां बताना (प्राय: व्यक्ति के सामने)।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
आलोचना की आदत पड़ जाती है (प्राय: पीठ पीछे),
निंदा → सामने वाले को नीचा दिखाने को (प्राय: व्यक्ति के सामने),
समालोचना → सामने वाले को सुधारने, उसकी अच्छाइयां तथा कमजोरियां बताना (प्राय: व्यक्ति के सामने)।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
2 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने आलोचना को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए आलोचना की जगह समालोचना का भाव रखना परम आवश्यक है।
Okay.