आहार
आ.श्री विद्यासागर जी ने आहार में एक पंड़ित जी के हाथ से कोई चीज़ नहीं ली पर दूसरे व्यक्ति से ले ली ।
पंड़ित जी नाराज़ – मैं तीन दिनों से देने की कोशिश कर रहा हूँ, आपने नहीं ली, इनसे क्यों ले ली ?
आ.श्री ने दूसरे व्यक्ति से पूछा…
आज तुमने आहार में क्या दिया था ?
याद नहीं ।
आ.श्री – पंड़ित जी! आप आहार देना नहीं चाहते थे,
बल्कि देखना चाहते थे कि मैं अमुक वस्तु लेता हूँ या नहीं,
जबकि ये व्यक्ति देना चाहते थे ।
मुनि श्री सुधासागर जी
4 Responses
आहार दान जो श्रद्बा भक्ति पूर्वक प़ासुक अन्न आदि आहार सुपात्र को देना कहलाता है। जो पंडित आ.श्री वि.सागर को आहार देने आया था उसमें श्रद्बा भक्ति नहीं थी बल्कि देखने आया था इसलिये महाराज ने आहार लेने से मना कर दिया था।
Yeh comment, general section mein bhi repeat ho gaya?
Delete कर दिया ।
Okay.