ईर्ष्या क्यों ?
ईर्ष्या तो बड़ों से होती है,
मैं छोटा क्यों बनूँ !
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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ईर्षा का मतलब दूसरों के उत्कर्ष यानी उसकी बढ़त कोई सहन नहीं कर पाना होता है।
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि ईर्षा तो बड़ों से होती है। अतः इस कार्य को करने वाले बहुत अहंकारी होते हैं। अतः जीवन में ईर्षा के भाव नहीं रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है, यह पाप की श्रेणी में आता है।
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ईर्षा का मतलब दूसरों के उत्कर्ष यानी उसकी बढ़त कोई सहन नहीं कर पाना होता है।
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि ईर्षा तो बड़ों से होती है। अतः इस कार्य को करने वाले बहुत अहंकारी होते हैं। अतः जीवन में ईर्षा के भाव नहीं रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है, यह पाप की श्रेणी में आता है।