उत्तम आकिंचन्य -धर्म
मुनिराजों को भय नहीं होता क्योंकि भय तो परिग्रह तथा परिजनों के कारण होता है, जिनका पूर्ण त्याग होता है। इसलिए उनके आकिंचन्य धर्म की पूर्णता होती है।
श्रवकों का उत्कृष्ट स्थान त्याग है, श्रमणों की प्रथम सीढ़ी।
त्याग मार्ग है। त्याग का त्याग लक्ष्य/ आकिंचन्य। भरत चक्रवर्ती को इसी कारण से अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान हो गया था।
आकिंचन्य नहीं पाला तो मृत्यु डाकुओं की तरह सब धरा लेगी/ किंचित भी नहीं बचेगा।
मुनि श्री मंगल सागर जी