उत्तम आर्जव धर्म
ऋजुता से ही ऋजु गति मिलती है या कहें सरलता से ही सरल गति मिलती है ।
स्त्री और त्रियंच पर्यायों का सम्बंध मायाचारी से कहा गया है,मनुष्य पर्याय बांधने के बाद अगर मायाचारी की तो स्त्री पर्याय मिलेगी ।
मासोपवासी मुनि जब अपनी जगह से विहार कर गये और दूसरे मुनि वहाँ आकर बैठ गये, लोग उनकी जयजयकार करने लगे, उनके मन में ये मायाचारी आ गयी कि मैंने थोड़े ही कहा था, ये कर रहे हैं तो करने दो, इस परिणाम के फलस्वरूप वो अगले जन्म में त्रिलोकमंडल नाम के हाथी बने ।
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उत्तम आर्जव का मतलब कुटिलता, मायाचारी नहीं होना चाहिए।मन वचन काय में सरलता होना चाहिए। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। जीवन में उत्तम आर्जव धर्म का पालन करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।