कर्म / पुरुषार्थ
रोग/ मुसीबतें तो पूर्व कर्मों से आती हैं। वर्तमान के पुरुषार्थ से कम/ समाप्त कर सकते हैं। पर हम दोष वर्तमान के निमितों को देते हैं।
पाप-कर्म तो सबकी सत्ता में रहते हैं। कुपुरुषार्थ (अभक्ष्य खाना, अव्यवस्थित जीवन, धर्म से दूर) से पाप-कर्मों की उदीरणा कर लेते हैं।
चलनी में दूध छानो, कर्मन को दोष दो।
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (शंका समाधान – 22.9.23)
3 Responses
कर्म एवं पुरुषार्थ का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए कर्म के साथ पुरुषार्थ करने परम आवश्यक है।
‘चलनी में दूध छानो, कर्मन को दोष दो।’ Is statement ka meaning clarify karenge, please ?
चलनी में दूध छानो, गलत काम कर रहे हो और दोष किसको दे रहे हो कर्मों को।