जिनवाणी को भी श्रुतज्ञान कहते हैं हालाँकि वे अक्षर हैं, कारण को कार्यरूप श्रुतज्ञान कहा है। हालाँकि श्रुतज्ञान तो ज्ञानावरण के क्षयोपशम से होता है।
परोक्ष ज्ञान है पर प्रमाणिक माना है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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4 Responses
जिनवाणी जो सब जीवों के हित का उपदेश देने से अरिहंत भगवान् की वाणी कहलाती है। तत्वों का स्वरूप बताने वाली यह द्वाद्वशांक रुप होती है। अतः मुनि महाराज जी ने तो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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जिनवाणी जो सब जीवों के हित का उपदेश देने से अरिहंत भगवान् की वाणी कहलाती है। तत्वों का स्वरूप बताने वाली यह द्वाद्वशांक रुप होती है। अतः मुनि महाराज जी ने तो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
Please explain meaning of “कारण को कार्यरूप श्रुतज्ञान कहा है” ?
अक्षरों को श्रुतज्ञान कैसे कहा ?
क्योंकि अक्षर श्रुतज्ञान में कारण हैं और श्रुतज्ञान कार्य।
Okay.