वैसे तो दोनों पर्यायवाची हैं (भावात्मक दृष्टि से) पर व्यवहार में जीव का प्रयोग ही होता है – जैसे जीवों की रक्षा, आत्मा की रक्षा नहीं, कर भी नहीं सकते ।
जीव रक्षा में किसकी रक्षा हुई ?
शरीर की द्रव्यात्मक, आत्मा की भावात्मक ।
चिंतन
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जीव का मतलब जो देखता है या जिसमें चेतना होती है,
आत्मा का मतलब जो यथासंभव ज्ञान,दर्शन,सुख आदि गुणों में वर्तता या परिणमन करता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि शरीर द़व्यात्मक और आत्मा भावात्मक होती है।
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जीव का मतलब जो देखता है या जिसमें चेतना होती है,
आत्मा का मतलब जो यथासंभव ज्ञान,दर्शन,सुख आदि गुणों में वर्तता या परिणमन करता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि शरीर द़व्यात्मक और आत्मा भावात्मक होती है।