केवलज्ञान, ज्ञान गुण की निरावरत (आवरण रहित) पर्याय है ।
केवलज्ञानी अपने ज्ञान को अनुभव की पर्याय नहीं बनने देते जैसे उपयोग दूसरी तरफ होने पर चोट भी पता नहीं लगती ।
पारिणामिक भावों के अलावा बाकी सब भाव पर-भाव हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
ज्ञान- – सत्य पूर्ण होना चाहिए। ज्ञान ब़ाम्ह वस्तुओं को जानने या देखने के लिए नहीं बल्कि शांत रहने के लिए होता है। ज्ञान हमेशा विवेक सहित होना चाहिए। केवलज्ञान- – जो सकल सराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवलज्ञान है यह ज्ञान चार घातियों कर्मों को नष्ट करके आत्मा में उत्पन्न होता है। भाव- – जीव के परिणाम को भाव कहते हैं,जीव के पांच भाव होते हैं। अतः केवलज्ञान, ज्ञान गुण की आवरण रहित पर्याय है। केवलज्ञानी अपने ज्ञान को अपने अनुभव की पर्याय नहीं बनने देते हैं जैसे उपयोग दूसरी तरफ होने पर चोट भी पता नहीं लगती है। अतः परिणामिक भावों के अलावा बाकी सब भाव पर-भाव है पर विभाव नहीं होते हैं।
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ज्ञान- – सत्य पूर्ण होना चाहिए। ज्ञान ब़ाम्ह वस्तुओं को जानने या देखने के लिए नहीं बल्कि शांत रहने के लिए होता है। ज्ञान हमेशा विवेक सहित होना चाहिए। केवलज्ञान- – जो सकल सराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवलज्ञान है यह ज्ञान चार घातियों कर्मों को नष्ट करके आत्मा में उत्पन्न होता है। भाव- – जीव के परिणाम को भाव कहते हैं,जीव के पांच भाव होते हैं। अतः केवलज्ञान, ज्ञान गुण की आवरण रहित पर्याय है। केवलज्ञानी अपने ज्ञान को अपने अनुभव की पर्याय नहीं बनने देते हैं जैसे उपयोग दूसरी तरफ होने पर चोट भी पता नहीं लगती है। अतः परिणामिक भावों के अलावा बाकी सब भाव पर-भाव है पर विभाव नहीं होते हैं।
“पर-भाव” aur “विभाव” mein kya difference hai?
विभाव = स्वभाव के विपरीत जैसे क्रोधादि
पर-भाव = जब उपयोग दूसरों में लगे, उस समय के भाव ।
Okay.